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कविता

पयोद और धरणी

त्रिलोचन


पयोदों की धारा गगन तल घेरे क्षितिज में
विलंबी होती है, धरणि उर का ताप तज के
बुलाती गाती है पल-पल, नए भाव उस के
बलाका माला से उठ कर उड़े और फहरे।

 


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हिंदी समय में त्रिलोचन की रचनाएँ